अपने जनपद के बारे में बताने के क्रम में मैंने "मां थावेवाली" की चर्चा की थी, इस समय उन्हीं "मां थावेवाली" के बारे में थोड़ा-बहुत लिख रहा हूं....
बिहार प्रान्त के गोपालगंज शहर से मात्र ६ किलो मीटर की दुरी पर सिवान जानेवाले राजमार्ग पर थावे नामक एक जगह है, जहां "मां थावेवाली" का अति प्राचीन मंदिर है । मां थावेवाली को सिंहासिनी भवानी, थावे भवानी और रहषु भवानी के नाम से भी भक्तजन पुकारते हैं।
कामरूप (असम) जहां कामख्यादेवी का बड़ा ही प्राचीन और भव्य मंदिर है, मां थावेवाली वहीं से थावे (गोपालगंज) आयीं, इसीकारण मां को "कामरूपरू-कामख्या देवी" के नाम से भी जाना जाता है। थावे में मां कामाख्या के एक बहुत सच्चे भक्त रहषु स्वामी थे किन्तु हथुआ (आधुनिक समय में गोपालगंज जिले का एक अनुमंडल, किन्तु मध्यकाल का एक विख्यात राज्य। तत्कालीन समय में थावे उसी राज्य के अन्तर्गत आता था।) के तत्कालीन राजा मनन सिंह की नजर में रहषु स्वामी एक ढोंगी भगत मात्र ही थे। अचानक एक दिन राजा मनन सिंह (जो कि अपनी राजसी मद में चूर रहता था) ने अपने सैनिकों को रहषु स्वामी को पकड़ लाने का आदेश दिया एवं उनके आने पर राजा ने कहा कि यदि वाकई मां का सच्च भक्त है तो उन्हे मेरे सामने बुला या फिर मृत्युदण्ड के लिए तैयार रह। रहषु स्वामी के द्वारा बार-बार समझाने पर पर भी राजा मनन सिंह नहीं माना एवं कहने लगा कि यदि तुने मां को नहीं बुलाया तो तेरे साथ थावे की पूरी जनता को भी मृत्युदण्ड दिया जाएगा। रहषु जी के पास मां जगद्धात्री को बुलाने के अलावा कोई चारा नहीं बचा । रहषु स्वामी जी मां को सुमिरने लगे तब मां दुर्गा कामाख्या स्थान से चलकर कोलकाता (काली के रूप में दक्षिणेश्वर स्थान में प्रतिष्ठित), पटना (यहां मां पटनदेवी के नाम से जानी गईं), आमी (छपरा जिला में मां दुर्गा का एक प्रसिद्ध स्थान) होते हुए थावे पहूंची और रहषू स्वामी के मस्तक को विभाजित करते हुए साक्षात् दर्शन दीं ।
मां ने जिस जगह पर दर्शन दिया वहां एक भव्य मन्दिर है तथा कुछ दूरी पर रहषु भगत जी का मन्दिर भी स्थापित है। जो भक्तजन मां के दर्शनों के लिए आते हैं वो रहषु स्वामी के मंदिर भी जरुर जाते हैं। ऐसी मान्यता है कि बिना रहषुजी का दर्शन किये आपकी यात्रा पूर्ण नहीं मानी जाती। इस मंदिर के पास ही वर्तमान में भी राजा मनन सिंह के महल का खंडहर दिखाई देता है।
मां के बारे में लोग कहते हैं कि मां थावेवाली बहुत दयालु और कृपालु हैं और अपने शरण में आये हुए सभी भक्तजनों का कल्याण करती हैं। हर सुख-दुःख में लोग इनके शरण में आते हैं और मां किसी को भी निराश नहीं करती हैं। किसी के घर शादी-विवाह हो या दुःख-बीमारी या फिर किसी ने गाड़ी-घोडा खरीदी तो सर्वप्रथम याद मां को ही किया जाता है। देश-विदेश में रहने वाले लोग भी साल-दो साल में घर आने पर सबसे पहले मां के दर्शनों को ही जाते हैं।
मां थावेवाली के मंदिर की पूरे पूर्वांचल तथा नेपाल के मधेशी प्रदेश में वैसी ही ख्याति है, जैसी मां वैष्णोदेवी की अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर। वैसे तो यहां भक्तजनों का आना पूरे वर्षभर चलता रहता है किन्तु शारदीय नवरात्रि एवं चैत्रमास की नवरात्रि में यहां काफ़ी अधिक संख्या में श्रद्धालु आते हैं। एवं सावन के महीने में बाबाधाम (देवघर में स्थित) जाने वाले कांवरियों की भी यहां अच्छी संख्या रहती है।
लेकिन अफसोस की बात यह है कि इतना महत्त्वपूर्ण स्थल होने के बाद भी यह स्थान विकास के मामले में राज्यसरकार के द्वारा उपेक्षित रह गया। सम्प्रति विकास की थोड़ी बयार यहां भी दिखने लगी है, किन्तु प्रतिशतता अभी भी बहुत कम है। आशा है आने वाले आगामी वर्षों में यह स्थान आम जनता एवं प्रशासन के सहयोग से समुचित विकास करेगा एवं "मां थावेवाली" का पवित्र स्थल विश्व-मानचित्र पर अपनी साख बना लेगा। किन्तु अपने ब्लॉग पर लिखते हुए मुझे इस बात की थोड़ी खुशी है कि वहां के कतिपय लोग इस स्थल की पहचान बनाने के लिए दिन-रात एक किए हुए हैं, जिनमें से सबसे महत्त्वपूर्ण नाम है श्री अजीत तिवारी जी का जिनके अथक प्रयासों से अंतरताने पर एक वेबसाईट बना जो बहुत कम समय में काफ़ी लोगों को इस स्थल की महत्ता से अभिज्ञात करा चुका है। साइट का वेबपता है- http://www.jaimaathawewali.com/
जय थावेवाली माई की !
(यह लेख श्री अजीत तिवारी जी के भोजपुरी लेख का हिन्दी अनुवाद ही है किन्तु कुछ जगहों पर मौलिकता को लिए हुए है, मूल भोजपुरी लेख हेतु यहां क्लिक करें ।)
2 comments:
Bahut badhiya kaam kiya hai aapne
mata se prartha hai ke hamesa aapke upar apni kripa-drishti banaye rakhe
Jai Maa Thawewali Ki
Ajit Tiwari
www.jaimaathawewali.com
Jai maa thawewali Teri jai ho
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