Monday, November 17, 2008

जे.एन.यू. की शान: पेरियार छात्रावास

जे.एन.यू. की धरती पर जिस जगह ने सर्वप्रथम मुझे प्रश्रय दिया वो कोई और नहीं जे.एन.यू. के दक्षिणापुरम खण्ड में स्थित "दक्षिण भारत की नदी- पेरियार" के नामराशिवाला पेरियार छात्रावास ही है। यह छात्रावास बालू-सीमेन्ट-छड़ इत्यादि से मिलकर बना मात्र कोई भवन नहीं है अपितु जीवन्तता की प्रतिमूर्ति है । एक बार जो इसके अहाते में प्रवेश कर गया, बस समझो कि यहीं का हो गया । इसके बारे में यह भी कहा जाता है कि जे.एन.यू. की राजनीति की धुरी यही है, खासकर "राइट च्वाइस" वालों का तो यह गढ़ ही है। 
यह छात्रावास जे.एन.यू. के केन्द्र में होने से सबको अपनी ओर आकर्षित करता है। इसके ठीक सामने बहुतों की स्पन्दन-स्थली "गोदावरी देवी" विराजमान हैं। एवं बगल में ही छोटे भाई "कावेरी जी" विराजते हैं । इनके पास ही "नीलगिरी" अथवा "गोदावरी" ढाबा (लोग इसके पहले नाम से कम ही जानते हैं) है, जो अपनी सड़ी-गली चाय के साथ घटिया पकौड़ों-समोसों के लिए कुख्यात है। हालांकि अधिकृत रूप से लोग इस ढाबे पर चाय पीने के लिए ही जाते है किन्तु (छुपी हुई बात जो सबको ही पता है..) अनधिकृत रूप से "आंखों की बीमारी" दूर करना ही सर्वप्रमुख उद्देश्य होता है।

[ये जो चित्र है ना, वो "गोदावरी" का है। ठीक इसके सामने वाला होस्टलवा मेरा है। अब ये मत पूछिएगा कि अपने होस्टल के चित्रवा के बदले में काहे गोदावरी का चित्र इहां दिया हुआ  है।] 

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