Tuesday, November 18, 2008

सत्यमेव जयते !!

हर बात में एक बात छुपी होती है और हर बात से एक बात निकलती है । उसी बात में सत्य का भी आश्रय होता है और वही बात झूठ का राजमहल भी है । अब बातों का क्या है !! उन्हें तो बस अपनी बात से ही बात है । और वो बात ही क्या जो किसी दूसरे बात को ना शुरु कर पाए । यह बात ही तो है,जिसके द्वारा निर्दोष भी फांसी पर चढ़ जाता है और आतंकवादी भी सरकारी दामाद बन कर सारे मजे लूटता है । इसी बात के दम पर तो हमारे राजनेता कोटि-अरबों के वारे-न्यारे कर लेते हैं । अब यह बात न हो तो सोचिए कि क्या होता ! खैर, इससे क्या फर्क पड़ता है कि कौन क्या बात करता है। भई, हम तो बिना बात के ही ये बात ले बैठे और जब ले हीं बैठे हैं तो फिर ब्लॉग पर आने के अपने वजूद को बताते चले जाएं। नहीं तो होगा यह कि आप टिप्पणी के रूप में बिना बातों के ही ढेर सारी बात मुझे सुना जाएंगे। तो चलिए इसी बात पर हम आपको एक छोटी बात भी बताते चले जाएं, जो मैंने अपने भैया के एक मित्र के मुंह से सुना था कि......

सूर्य छिपे अदरी-बदरी, अरु चन्द्र छिपे अमावस आए,
पानी की बूंद पतंग छिपे, अरु मीन छिपे इच्छाजल पाए,
भोर भए तब चोर छिपे, अरु मोर छिपे ऋतु सावन आए,
कोटि प्रयास करे किन कोई, कि सत्य का दीप बुझे ना बुझाए ॥

8 comments:

Unknown said...

सत्य की हमेशा जीत होती है, पर आज कल झूट का प्रचार किया जा रहा है. उदहारण के लिए, जब से यह ऐटीएस का स्वांग शुरू हुआ है तबसे और बम धमाकों की खबरें आनी बंद हो गई हैं. अब तो यह लगने लगा है कि जयपुर, अहमदाबाद, बंगलौर, दिल्ली, गुवाहाटी में बम धमाके हुए ही नहीं थे. कोई सपना देखा था हमने. बस यह अकेला धमाका हुआ है जिस की जांच ऐटीएस कर रही है.

कांग्रेस और उसकी सहयोगी पार्टियाँ, मीडिया, स्वघोषित बुद्धिजीवी, मुसलमानों का एक वर्ग, सब एक कोशिश कर रहे हैं कि इस देश को कैसे एक बार फ़िर विभाजित करवाया जाय. उनका अभी का उद्देश्य है किसी तरह चुनाव जीतना, और उस के लिए हिन्दुओं को बदनाम कर मुसलमानों को खुश करने का षड़यंत्र हो रहा है. कोई स्पष्ट नतीजा निकले ऐसा किसी का कोई इरादा नहीं है.

Anil Pusadkar said...

sahi likha aapne

Manish said...

सूर्य छिपे अदरी बदरी, अउर चाँद छिपे जब अमावस आय
जल बूंद पड़े तो किट छिपे, मीन छिपे जब गहरा जल पाय
भोर भये अती चोर छिपे, मोर छिपे जब ऋतू फागुन आय
घूँघट ओढ़े चाहे केहू केतनो पर चंचल नैन छिपे ना छिपाय

Manish said...

सूर्य छिपे अदरी-बदरी, अरु चन्द्र छिपे अमावस आए,
पानी की बूंद पतंग छिपे, अरु मीन छिपे इच्छाजल पाए,
भोर भए तब चोर छिपे, अरु मोर छिपे ऋतु सावन आए,
कोटि प्रयास करे किन कोई, कि सत्य का दीप बुझे ना बुझाए ॥

सर जी इन पंक्तियों के कवि कौन हैं।यदि कोई जानकारी हो तो कृपया मेल कीजिएगा
Mmaithani@gmail.com

Ssarjana ke Ayam said...

सुन्दरदास

Unknown said...

कवि गंग

Unknown said...

कवि गंग (1538-1625 ई.), जिनका वास्तविक नाम गंगाधर था, बादशाह अकबर के दरबारी कवि थे। कवि गंग के के विषय में कहा गया हैः

उत्तम पद कवि गंग के कविता को बलवीर।
केशव अर्थ गँभीर को सूर तीन गुन धीर॥

बादशाह अकबर के साथ ही रहीम, बीरबल, मानसिंह तथा टोडरमल आदि अकबर के दरबारीगण कवि गंग के चाहने वाले थे। उनकी रचनाओं को शब्दों का सारल्य के साथ साथ वैचित्र्य, अलंकारों का प्रयोग और जीवन की व्याहारिकता अत्यन्त रसमय एवं अद्भुत बना देते हैं। उनकी रचनाओं में जीवन का यथार्थ स्पष्ट रूप से झलकता है

Unknown said...

Right